Monday, February 27, 2012

सर पे सिंदूर का “ फैशन ” नही है,
गले मे मंगलसूत्र का “टेंशन” नही है!
माथे पे बिंदी लगाना “आउटडेटेड” लगती है,
तरह तरह की लिपस्टिक अब होंठो पे सजती है!
आँखो मे काजल और मस्कारा लगाती हैं,
नकली पलकों से आँखो को खूब सजाती हैं!
... मूख ऐसा रंग लेती हैं की दूर से चमकता है,
प्रफ्यूम इतना तेज की मीलों से महकता है!
जो नथ कभी नाक कीशोभा बढ़ती थी,
आज होठ और जीभ पेलग नाक को ठेंगा दिखती हैं!
बालो की “स्टाइल” जाने कैसी -कैसी हो गयी,
वो बलखाती लंबी चोटी ना जाने कहाँ खो गयी!
और परिधान तो ऐसे “डिज़ाइन” मे आये हैं,
कम से कम पहनना इन्हे खूब भाये है!
आज अंग प्रदर्शन करना मजबूरी सी लगती है,
सोचती है इसी मे इनकी खूबसूरती झलकती है!
पर आज भी जब कोई भारतीय परिधान पहनती है,
सच बताऊं सभी की आँखे उस पे ही अटकती है!
सादगी,भोलापन और शर्म ही भारतीय स्त्री की पहचान है,
मत त्यागो इन्हें यही हमारे देश का स्वाभिमान है!

Wednesday, February 22, 2012

यह स्वर्ग है, यही नरक है
बस नाम मात्र का फर्क है
गाहे-बगाहे के बाकी तर्क है
जो चमक गया वो अर्क है
जो फिसल गया वो गर्क है


तन्हाई ने एक दिन
मुझसे चुपके से यूं कहा,
दिल तुम्हारा आजकल
ऐसे क्यों धडक रहा ?
अपनी धडकनों से तुम कुछ क्यों नहीं कहते,
हंसी-खुशी वो चुपचाप शान्त क्यों नहीं रहते ?
मैं तो अब भी हुँ तुम्हारे साथ
यूँ ही कसकर थामे रखो मेरा हाथ ।



मानवता आज बैठी है हारी

जग का आधार जिसे वेद मानते
फिर क्यों हम उसको तुच्छ जानते?
जीवन फूल उपजता जिससे, जग में नारी ही तो वह क्यारी
मानवता आज बैठी है हारी



कभी तिनके, कभी पत्ते, कभी ख़ुश्बू उड़ा लाई
हमारे घर तो आंधी भी कभी तनहा नहीं आई

लचकती डाल को ही सबने लचकाया है इस जग में
सबब टहनी के झुकने का ये दुनिया कब समझ पाई

अजब फ़नकार है, गढ़ता है शक्लें सैकड़ों हर दिन
मगर सूरत कभी कोई किसी से कब है टकराई

किसी के मानने, ना मानने से कुछ नहीं होता
उसी का नूर है सब में, उसी की सब में रानाई

!! राम राम !!

Thursday, February 16, 2012

स्वामी विवेकानन्द

Saturday, February 11, 2012

किसको पता है
कल के माथे
क्या लिखा है ?
कल की तरह
वो कल भी तो पोशीदा है
हम रहे ना रहे
ज़िन्दगी बस जाविदा है ।

कुछ नई दीवारें
एक नई छत
कुछ नई खिड़कीयाँ
उस साइज के नए परदे ।

साथ मे कुछ नए कपड़े
एक जोडी़ नई चप्पल
कुछ नए
कुछ पुराने यार-दोस्त ।

ज़िन्दगी की मियाद यहां बस ग्यारह महीने की
फिर एक नया पता
इस शहर में जब से आया हुँ
“स्थायी पता” के आगे जगह खाली छोड़ देता हुँ