Monday, January 30, 2012

नेता और कुत्ता
एक दिवस मैंने था सोचा, क्यों न मैं नेता बन जाऊँ।
पर नेताओं के गुण क्या हैं, उन गुण को मैं कैसे पाऊँ।।
मैंने पूँछा इक कुत्ते से, नेता की परिभाषा क्या है।
भौं भौं करके वह था बोला, नेता क्या तूँ कोई नया है।।
... नेता मेरे जैसे होते, मेरी जैसी करते भौं भौं।
वह आगे ही बढ़ते ही जाते, मेरे गुण अपनाते ज्यों ज्यों।।
हाई कमान के सम्मुख सारे, नेता अपनी पूँछ हिलाते।
चलते फिरते सोते जगते, हाई कमान चालीसा गाते।।
दिखे जो नेता कोई विरोधी , गाली देते हैं गुर्राते।
भूल के अपनी मर्यादा को, भौं भौं कर उसको दौड़ाते।।
जब आता कुत्तों का मौसम, कुत्ते दिखते जगह जगह पर।
जब आता चुनाव का मौसम, नेता दिखते गाँव शहर हर।।
कुत्तों का बस एक धर्म है, जिसकी खायें सदा भजायें।
नेताओं का धर्म न कोई, देश की खायें देश को खायें।।
एक ओर गुण मेल न खाता, हम मालिक अपने न बदलें।
सत्ता के खाति तो नेता, सब मतलब परस्त ही निकलें।।
हम कुत्ते हैं सभी जानते, नहीं पता नेता की जात का।
सदा बदलते रहते जो दल, धोबी कुत्ता घर न घाट का।।
टूट गया था मेरा सपना, बीबी ने आवाज लगाई।
कभी मैं नेता नहीं बनूँगा, कुत्ते की सौगंध ये खाई।।
नेता और वेश्या
नेता और वेश्या में,
कोई खास फर्क नहीं है।
नेता को वेश्या मान लूँ,
इसका अर्थ यही है।।
जिस तरह से वेश्यायें,
बनावटी श्रंगार करके
अपने ग्राहको को
बेवकूफ बनाती हैं
उसी तरह से नेता भी
झूठे लुभावने आश्वासनों से
जनता को लुभा करके
बेवकूफ बनाते हैं
और जीतने के बाद
सभी वादे भूल जाते हैं
यदि आप मेरी बात से
असहमत हों
तो कृपया मेरी शंका का
समाधान करें


Adalat-e-hushan me phunch ke friyad kiya hmne ,

Ki mukdma-e-muhbbat me , mujhe koi sja to dijiye,,,
Kadmo me pde dil ka dher dikha ke wo boli ,
Kaun sa dil hai aapka, phle shinakht to kr lijiye.............

भूल से अगर कोई भूल हुई ,
तो भूल समझ कर उसे भूल जाना,
मगर भाई भूलना सिर्फ भूल को,
भूलकर भी हमें न भूल जाना !!

Tuesday, January 24, 2012

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...

नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...

गाँधी से आई, आँधी से आई
... टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...

काँगरेस से आई, जनता से आई
झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...

डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...

वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...

लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...

महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...

छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...

परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...

धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई - गोरख पाण्डेय 1978


काहें आंख मिलवलू कइलू फुदुक-फुदुक के खेला
पतइन के कोरा में सटि के खूब लगवलू मेला
ना जनलू की पतझड़ आई, पात-पात झर जइहें
ए मैना तू आसरा छोड़ , तोता फेरु ना अइहें



गजबे मुकद्दर हो गइल
गड़ही समुन्दर हो गइल

साथी त टंगरी खींच के
हमरा बराबर हो गइल

घरही में सिक्सर तान के
बबुआ सिकन्दर हो गइल

राजा मदारी कब भइल?
... जब लोग बानर हो गइल

'भावुक' कहाँ भावुक रहल
ईहो त पत्थर हो गइल - मनोज भावुक



घाव पाकी त फुटबे करी
दर्द छाती में उठबे करी

बिख भरल बात लगबे करी
शूल आँतर में चुभबे करी

खीस कब ले रखी आँत में
एक दिन ऊ ढकचबे करी

जब शनिचरा कपारे चढ़ी
... यार, पारा त चढ़बे करी

दोस्ती जहँवाँ बाटे उहाँ
कुछ शिकायत त रहबे करी

राह कहिये से देखत बा जे
ऊ त रह-रह चिहुकबे करी

बाटे नादान 'भावुक' अभी
राह में गिरबे-उठबे करी -मनोज भावुक


सब दिन नए ना रहे, पुरान हो जाला
नीमनो चीज कबो हेवान हो जाला ।
समय से बढ़ि के कुछऊ ना होला
मुगाज़ ना बोलेला तबो बिहान हो जाला । अंजन जी


हर कोई आपन जिनगी जियत बा
आपन जिनगी के रस पियत बा
जे जैसन चाहे जी सकेला
आपन जिन्दगी के रस पि सके ला
हर कोई आपना तरीका से जिनगी जिए के आजाद बा
आपन जिनगी के खुद ही फरियाद बा
जेकरा से पूछी उ
आपन जिनगी के सजावे में
परेसान बा
कोई सफलता के साथ बा त
कोई के जिनगी बनावे में
जिनगिया बर्बाद बा (द्वारा - रिशिन्द्र कुमार )

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में.

Saturday, January 7, 2012

तुलसी की जगह "Money plant" ने ले ली,
चाचीजी की जगह Aunt ने लेली...!!!

पिताजी जीते जी "Dead" हो गये
आगे और भी है आप तो अभी से "Glad" हो गये...!!
...
भाई Bro हो गये बहिन अब "Sis" हो गयी,
दादा दादी की तो हालत टाँय टाँय "Fiss" हो गयी...!!!

बड़ी बुरी दशा परिचारिका के "Mister"की हो गयी,
बेचारे की तो बीवी भी Sister हो गयी...!!

मुन्नी बिना कुछ किये "बदनाम" हो गयी,
ऊपर से शीला और भी "जवान" हो गयी...!!

Tv की सास बहु मेँ साँप नेवले सा "रिश्ता" है,
पता नहीँ ये एकता कपूर औरत है या "फरिश्ता" है...!!

भारत पाकिस्तान के मैच मेँ " Condom"की AD आती है,
देखना है ये विज्ञापनोँ की "बेशर्मी" कहाँ तक जाती है...!!

जीती जागती माँ बच्चोँ के लिये "Mummy" हो गयी,
घरकी रोटी अब अच्छी कैसे लगे...
5 रुपये की Maggi जो इतनी "Yummy" हो गयी...!!!

दिन भर बेटा "CHATTING "ही नहीँ करता,
रात मे Mobile पर "SETTING" भी करता है...!!

लैला और मजनूँ के भूत भी "पछताते" हैँ,
क्योँकि उनके नाम अब सड़क किनारे नुक्कड़ पे" पुकारेजा" हैँ...!!

बहुत दुखी हुँ मैँ... ये दिल देख कर टूट जाता है...
अपनोँ के द्वारा ही जिस तरह भारतीय सभ्यता का मजाक उड़ाया जाता है. :(


समझने की बात थी
कोई समझ गया और
किसी ने समझना ही न चाहा
समझ लेते तो फासले
कभी इतने न बड़ते,
... दोस्ती में हमसे मांग ली होती
हम जाँ भी दे देते
मगर कुछ सब्र तो कर लेते


हर कोई आपन जिनगी जियत बा
आपन जिनगी के रस पियत बा
जे जैसन चाहे जी सकेला
आपन जिन्दगी के रस पि सके ला
हर कोई आपना तरीका से जिनगी जिए के आजाद बा
आपन जिनगी के खुद ही फरियाद बा
जेकरा से पूछी उ
आपन जिनगी के सजावे में
परेसान बा
कोई सफलता के साथ बा त
कोई के जिनगी बनावे में
जिनगिया बर्बाद बा (द्वारा - रिशिन्द्र कुमार


संता -ई बताव की एक बकरी के तीन टांग ता चार बकरी के कई गो टांग ?
बंता -बारह गो !
संता -पगले हव का मरदे एगो बकरिया लांगर रहे त का कुल्ही लंगरे रही हन सा का ?

सावन में बरखा बरसबे करी आकाश में बिजुरी चमक्बे करी ,
कहिया आइबू तू ए परदेसी तहरा के देखे खातिर आखिया तरसबे करी .